आज एक जन गुजर गए हैं
हम सबको छोड़ गए हैं।
तोड़ के वह बंधन सारे
छोड़ के वह रिश्ते सारे।
वह तो हमसे दूर गए हैं
अपने बच्चों को छोड़ गए हैं।
ना आ पाएंगे चाहकर भी कभी,
उनकी कमी हमें सताती है अभी।
छोड़ के वह इस जीवन को
बढ़ चले हैं एक नई छोर को।
परंतु जब यह सोचा विवेक से,
तो परिचित हुआ इस सत्य से।
जो आया है सो जाएगा राजा , रंक, फकीर
किसी के हाथ में नहीं है अमरता की लकीर।
मैं आई हूं तो मैं भी जाऊंगी, यहां ना आया कोई होके अमर।
आना-जाना, जाना-आना लगा रहेगा, ये दिन भी जाएगा गुजर।
- प्रेरणा यादव
सेकंड ईयर, बीएजेएमसी,
एमिटी यूनिवर्सिटी, कोलकाता
हम सबको छोड़ गए हैं।
तोड़ के वह बंधन सारे
छोड़ के वह रिश्ते सारे।
वह तो हमसे दूर गए हैं
अपने बच्चों को छोड़ गए हैं।
ना आ पाएंगे चाहकर भी कभी,
उनकी कमी हमें सताती है अभी।
छोड़ के वह इस जीवन को
बढ़ चले हैं एक नई छोर को।
परंतु जब यह सोचा विवेक से,
तो परिचित हुआ इस सत्य से।
जो आया है सो जाएगा राजा , रंक, फकीर
किसी के हाथ में नहीं है अमरता की लकीर।
मैं आई हूं तो मैं भी जाऊंगी, यहां ना आया कोई होके अमर।
आना-जाना, जाना-आना लगा रहेगा, ये दिन भी जाएगा गुजर।
- प्रेरणा यादव
सेकंड ईयर, बीएजेएमसी,
एमिटी यूनिवर्सिटी, कोलकाता
❤️❤️❤️
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